Wednesday, 28 May 2014

आम को शास्त्रों में अमृत फल माना गया है | आम को फलों का राजा भी कहा जाता है | आइये आज हम इसके कुछ सरल और उपयोगी प्रयोग जानते हैं :--

१- यदि बच्चों को मिट्टी खाने की आदत हो तो उसे छुड़ाने के लिए आम की गुठली की गिरी का चूर्ण पानी में मिलाकर दिन में दो -तीन बार पिलायें , इस प्रयोग से पेट के कीड़े भी मर जाते हैं | 

२-सूखी खांसी - एक पका हुआ अच्छा सा आम लें , उसे आग में भून लें | जब यह ठंडा हो जाए तो इसे धीरे -धीरे चूसें , इससे सूखी खांसी में लाभ होता है | 

३- मधुमेह - आम के पत्तों को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें , इसे 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह - शाम पानी से 20-25 दिन लगातार सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है |

४- कब्ज़ - पके आम खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से शौच खुलकर आती है , जिससे पेट साफ़ हो जाता है और कब्ज़ से छुटकारा मिल जाता है |

५- कान दर्द -आम के पत्तों का रस निकालें , इसे हल्का सा गर्म करके कुछ बूँद कान में डालें , कान दर्द में लाभ होता है |

६-पायरिया - आम की गुठली की गिरी निकल लें , सुखाकर इसका बारीक़ चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को मंजन की तरह करने से पायरिया एवं दांतों के सभी रोगों में लाभ होता है |

७- लू तथा गर्मी -कच्चे आम का पन्ना बना कर पीने से लू तथा गर्मी लगने से होने वाली बेचैनी ठीक होती है |

आम खाने के बाद पाचन सम्बन्धी दिक्कत होने पर तीन - चार जामुन खा लें ,लाभ होगा | जामुन के स्थान पर चुटकी भर पिसी सौंठ में इतना ही सेंधा नमक मिलाकर लिया जा है |
आम खाने के बाद गर्म दूध का सेवन करना चाहिए , आम के ऊपर पानी का सेवन कदापि ना करें |


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अरहर

अरहर की खेती लगभग ३,५०० साल पहले से की जाती है | यह भारत में बहुत प्रयोग की जाती है , यहाँ पर इस दाल को शाकाहारी वर्ग के लिए मुख्य प्रोटीन स्रोत माना जाता है | अरहर की दाल में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन के साथ-साथ amino acids ,methionine ,lysine or tryptophan भी पाए जाते हैं | 
दाल के रूप में उपयोग में ली जानेवाली सभी दलहनों में अरहर का प्रमुख स्थान है | यह गर्म तथा शुष्क होती है इसलिए इसे देसी घी में छौंककर खाना चाहिए | अरहर की दाल में पर्याप्त मात्रा में घी मिलाकर खाने से वह वायुकारक नहीं रहती | यह दाल त्रिदोषनाशक (वात ,पित्त और कफ़ ) है , अतः यह सभी के लिए अनुकूल है |
आइये जानते हैं अरहर के कुछ औषधीय गुण ------------
१-अरहर के पत्तों और दूब घास का रास निकालकर छान लें , इसे सूंघने से आधे सर का दर्द दूर होता है |
२-अरहर के पत्तों को जलकर राख बना लें , इस राख को दही में मिलाकर लगाने से खुजली समाप्त होती है |
३-अरहर की दाल खाने से पेट की गैस की शिकायत दूर होती है |
४-रात को अरहर की दाल पानी में भिगो दें , सुबह इस पानी को गर्म करके गरारे करने से गले की सूजन दूर होती है |
५-अरहर के कोमल पत्ते पीसकर घावों पर लगाने से घाव जल्दी भरते है |
६-यदि शरीर के किसी अंग पर सूजन है तो चार चम्मच अरहर की दाल को पीसकर बांधने से उस अंग की सूजन खत्म हो जाती है |
७-अरहर की दाल पाचक है तथा इसका सेवन बवासीर , बुखा
र, व गुल्म रोगों में लाभकारी है |

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आड़ू

आड़ू को संस्कृत में आरुक कहते हैं यह लगभग ८ मीटर ऊँचा,विशाल या छोटा वृक्ष होता है जिसकी शाखाएं अरोमिल होती हैं | इसके पत्ते आम के पत्तों जैसे गहरे हरेरंग के होते हैं जो पक कर गिरने से पहले लाल रंग के हो जाते हैं | फल गोलाकार,५-७ सेंटीमीटर व्यास के,गूदेदार ,पीले रंग के,रक्ताभ,आभायुक्त तथा अत्यंत कठोर गुठली युक्त होते हैं | इनका पुष्पकाल फ़रवरी-मार्च में तथा फल काल अप्रैल से जून में होता है | इसकी गिरी में से एक प्रकार का तेल निकला जाता है जो कड़वे बादाम तेल की तरह होता है ।आड़ू के फल में शर्करा,साइट्रिक अम्ल,एस्कॉर्बिक अम्ल,प्रूसिक अम्ल,ओलिक अम्ल,लिनोलिक अम्ल,प्रोटीन,खनिज,विटामिन A ,B तथा C आदि प्राप्त होते हैं | आज हम आपको आड़ू के औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे-

१- कर्णशूल- आड़ू बीज तेल को १-२ बूँद कान में डालने से कान की वेदना का शमन होता है |

२-विबन्ध - प्रतिदिन सोने से पूर्व छिलका सहित एक आड़ू फल का सेवन करने से कब्ज में लाभ होता है |

३- आंत्र कृमि - १०-२० मिलीलीटर आड़ू स्वरस में १२५ मिलीग्राम हींग मिलाकर पिलाने से आँतों के कीड़ों का शमन होता है

४-आमाशय शूल - १०-२० मिलीलीटर आड़ू फल स्वरस में ५०० मिलीग्राम अजवाइन चूर्ण मिलाकर पिलाने से पेट दर्द में लाभ होता है |

५- व्रण - आड़ू के पत्तों को पीसकर लगाने से घाव,रोएँ की सूजन,खुजली तथा बवासीर में लाभ होता है |

६- चर्म रोग - आड़ू बीज तेल की शरीर पर मालिश करने से चर्मरोगों में लाभ होता है|


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देसी फ्रिज

मिट्टी के पात्रों का इतिहास हमारी मानव सभ्यता से जुड़ा है। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में अनेक मिट्टी के बर्तन मिले थे। पुराने समय से कुम्हार लोग मिट्टी के बर्तन बनाते आ रहे हैं। कुम्हार शब्द कुम्भकार का अपभ्रंश है। कुम्भ मटके को कहा जाता है, इसलिए कुम्हार का अर्थ हुआ-मटके बनाने वाला। पानी भरने के साथ-साथ हमारे पूर्वज भोजन पकाने और दही जमाने जैसे कार्यों में भी मिट्टी के पात्रों का इस्तेमाल करते थे। वे इन बर्तनों के गुणों से भी अच्छी तरह परिचित थे। चलिए जानते हैं कि इन बर्तनों के इस्तेमाल से लाभ....

हमारे यहां सदियों से प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी का इस्तेमाल होता आया है। दरअसल, मिट्टी में कई प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार मिट्टी के बर्तनों में भोजन या पानी रखा जाए, तो उसमें मिट्टी के गुण आ जाते हैं। इसलिए मिट्टी के बर्तनों में रखा पानी व भोजन हमें स्वस्थ बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। मिट्टी की छोटी-सी मटकी में दही जमाया गया दही गाढ़ा और बेहद स्वादिष्ट होता है। मटके या सुराही के पानी की ठंडक और सौंधापन के तो क्या कहने!!!!!!!!!!!!!
गर्भवती स्त्रियों को फ्रिज में रखे, बेहद ठंडे पानी को पीने की सलाह नहीं दी जाती। उनसे कहा जाता है कि वे घड़े या सुराही का पानी पिएं। इनमें रखा पानी न सिर्फ हमारी सेहत के हिसाब से ठंडा होता है, बल्कि उसमें सौंधापन भी बस जाता है, जो काफी अच्छा लगता है।
गर्मियों में लोग फ्रिज का या बर्फ का पानी पिते है ,इसकी तासीर गर्म होती है.यह वात भी बढाता है |
बर्फीला पानी पीने से कब्ज हो जाती है तथा अक्सर गला खराब हो जाता है |
मटके का पानी बहुत अधिक ठंडा ना होने से वात नहीं बढाता ,इसका पानी संतुष्टि देता है.
मिटटी सभी विषैले पदार्थ सोख लेती है तथा पानी में सभी ज़रूरी सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाती है.
मटके को रंगने के लिए गेरू का इस्तेमाल होता है जो गर्मी में शीतलता प्रदान करता है |मटके के पानी से कब्ज ,गला ख़राब होना आदि रोग नहीं होते |

सावधानी
सुराही और घड़े को साफ रखें, ढककर रखें तथा जिस बर्तन से पानी निकालें, वह साफ तरह से रखा जाता हो। मटकों और सुराही का इस्तेमाल करने के भी कुछ नियम होते हैं। इनके छोटे-छोटे असंख्य छिद्रों को हाथ लगाकर साफ नहीं किया जाता। बर्तन को ताजे पानी से भरकर, जांच लेने के बाद केवल साधारण तरीके से धोकर तुंरत इस्तेमाल किया जा सकता है। बाद में कभी धोना हो, तो स्क्रब आदि से भीतर की सतह को साफ कर लें। मटकों और सुराही के पानी को रोज बदलना चाहिए। लम्बे समय तक भरे रहने से छिद्र बंद हो जाते हैं।


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मौसमी

मौसमी अधिकतर दक्षिण-पूर्व एशिया में पाया जाने वाला फल है | इसके पेड़ की लम्बाई २४- २५ फुट तक होती है | भारत में यह फल जुलाई, अगस्त तथा नवम्बर- मार्च तक उपलब्ध रहता है | यह देखने में कुछ -कुछ नींबू की तरह होती है परन्तु स्वाद में यह मीठी होती है | मौसमी का फल नारंगी के बराबर आकार का होता है| मौसमी खाने में शीतल होती है तथा इसका सेवन सभी प्रकृति वालों के लिए तथा सभी अवस्थाओं में लाभदायक है | 
मौसमी रुचिकारक, धातुवर्धक और खून को साफ़ करने वाली है | इसके सेवन से पाचन में लाभ मिलता है | आइये जानते हैं मौसमी के कुछ लाभ -

१- मौसमी का रस पीने से रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा जीवनी शक्ति की वृद्धि होती है |

२- मौसमी खाने से दांत मज़बूत होते हैं और इसका रेशा कब्ज़ दूर करने में मदद करता है |

३-मौसमी के रस में क्षार तत्व अधिक होता है अत: यह खून की अम्लता (एसिडिटी) को दूर करता है|

४- मौसमी के रस को हल्का सा गर्म करके इसमें ५ - ६ बूँद अदरक का रस डालकर पीने से जुकाम में आराम मिलता है |

५- मौसमी या इसके रस के सेवन से रक्तवाहिनियों में कोलेस्ट्रोल जमा नहीं हो पाता और ह्रदय रोग होने की संभावना नहीं रहती | अतः इसका सेवन ह्रदय को स्वस्थ रखता है |

६- मौसमी का रस पीने से आंव या पेचिश का रोग दूर हो जाता है |

७- मौसमी के रस के सेवन से बुखार में काफी लाभ होता है


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हरड़

हरड़ के नाम से तो हम सब बचपन से ही परिचित हैं | इसके पेड़ पूरे भारत में पाये जाते हैं | इसका रंग काला व पीला होता है तथा इसका स्वाद खट्टा,मीठा और कसैला होता है | आयुर्वेदिक मतानुसार हरड़ में पाँचों रस -मधुर ,तीखा ,कड़ुवा,कसैला और अम्ल पाये जाते हैं | वैज्ञानिक मतानुसार हरड़ की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसके फल में चेब्यूलिनिक एसिड ३०%,टैनिन एसिड ३०-४५%,गैलिक एसिड,ग्लाइकोसाइड्स,राल और रंजक पदार्थ पाये जाते हैं | ग्लाइकोसाइड्स कब्ज़ दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| ये तत्व शरीर के सभी अंगों से अनावश्यक पदार्थों को निकालकर प्राकृतिक दशा में नियमित करते हैं | यह अति उपयोगी है | आज हम हरड़ के कुछ लाभ जानेंगे -

१- हरड़ के टुकड़ों को चबाकर खाने से भूख बढ़ती है |

२- छोटी हरड़ को पानी में घिसकर छालों पर प्रतिदिन ०३ बार लगाने से मुहं के छाले नष्ट हो जाते हैं | इसको आप रात को भोजन के बाद भी चूंस सकते हैं |

३- छोटी हरड़ को पानी में भिगो दें | रात को खाना खाने के बाद चबा चबा कर खाने से पेट साफ़ हो जाता है और गैस कम हो जाती है |

४- कच्चे हरड़ के फलों को पीसकर चटनी बना लें | एक -एक चम्मच की मात्रा में तीन बार इस चटनी के सेवन से पतले दस्त बंद हो जाते हैं |

५- हरड़ का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दो किशमिश के साथ लेने से अम्लपित्त (एसिडिटी ) ठीक हो जाती है |

६- हरीतकी चूर्ण सुबह शाम काले नमक के साथ खाने से कफ ख़त्म हो जाता है |

७- हरड़ को पीसकर उसमे शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आनी बंद हो जाती है|



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पित्त वृद्धि

आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मानव शरीर , प्रकृति में व्याप्त पांच तत्वों से मिलकर बना है ये तत्व हैं -वायु,जल,अग्नि,आकाश और पृथ्वी | 
आयुर्वेद ने इन पांच तत्वों को मूल तत्व समझते हुए इनकी उपस्थिति को वात ,पित्त और कफ के नाम से संज्ञान में लिया है | दिन के मध्य प्रहर और रात्री के मध्य प्रहर में पित्त बढ़ता है।
पित्त की वृद्धि से कब्ज़ ,सिरदर्द ,भूख न लगना ,सुस्ती आदि के लक्षण होते हैं | पित्त की वृद्धि का उपचार विभिन्न औषधियों द्वारा किया जा सकता है :--
१-हरीतकी का चूर्ण सुबह -शाम मिश्री के साथ खाने से पित्त की वृद्धि ठीक होती है और जलन भी शांत होती है |

२-पित्त बढ़ने पर मुनक्के का सेवन भी अति लाभकारी है | इससे भी पित्त की जलन दूर होती है |

३- कागज़ी नींबू का शरबत सुबह -शाम पीने से पित्त की वृद्धि बंद हो जाती है |

४-गिलोय का रस 10 ml रोज़ तीन बार शहद में मिलाकर लेने से लाभ होता है |

५-छोटी इलायची सुबह -शाम खाने से पित्त में लाभ होता है |
- सौंफ , धनिया ( सुखा या हरा ) , हिंग , अजवाइन , आंवला आदि पित्त को नियंत्रित करते है।
- सुबह सुबह छाछ , निम्बू पानी , नारियल पानी , मूली , फलों के रस आदि के सेवन से पित्त नहीं बढ़ता।


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अमरूद है एक बेहतरीन औषधि

अमरूद एक बेहतरीन स्वादिष्ट फल है। अमरूद कई गुणों से भरपूर है। अमरूद में प्रोटीन 10.5 प्रतिशत, वसा 0. 2 कैल्शियम 1.01 प्रतिशत बी पाया जाता है। अमरूद का फलों में तीसरा स्थान है। पहले दो नम्बर पर आंवला और चेरी हैं। इन फलों का उपयोग ताजे फलों की तरह नहीं किया जाता, इसलिए अमरूद विटामिन सी पूर्ति के लिए सर्वोत्तम है।

विटामिन सी छिलके में और उसके ठीक नीचे होता है तथा भीतरी भाग में यह मात्रा घटती जाती है। फल के पकने के साथ-साथ यह मात्रा बढती जाती है। अमरूद में प्रमुख सिट्रिक अम्ल है 6 से 12 प्रतिशत भाग में बीज होते है। इसमें नारंगी, पीला सुगंधित तेल प्राप्त होता है। अमरूद स्वादिष्ट फल होने के साथ-साथ अनेक गुणों से भरा से होता है।

यदि कभी आपका गला ज्यादा ख़राब हो गया हो तो अमरुद के तीन -चार ताज़े पत्ते लें ,उन्हें साफ़ धो लें तथा उनके छोटे-छोटे टुकड़े तोड़ लें | एक गिलास पानी लेकर उसमे इन पत्तों को डाल कर उबाल लें , थोड़ा पकाने के बाद आंच बंद कर दें | थोड़ी देर इस पानी को ठंडा होने दें ,जब गरारे करने लायक ठंडा हो जाये तो इसे छानकर ,इसमें नमक मिलाकर गरारे करें , याद रखें कि इसमें ठंडा पानी नहीं मिलना है |

अमरूद के ताजे पत्तों का रस 10 ग्राम तथा पिसी मिश्री 10 ग्राम मिलाकर 21 दिन प्रात: खाली पेट सेवन करने से भूख खुलकर लगती है और शरीर सौंदर्य में भी वृद्धि होती है।

अमरूद खाने या अमरूद के पत्तों का रस पिलाने से शराब का नशा कम हो जाता है। कच्चे अमरूद को पत्थर पर घिसकर उसका एक सप्ताह तक लेप करने से आधा सिर दर्द समाप्त हो जाता है। यह प्रयोग प्रात:काल करना चाहिए। गठिया के दर्द को सही करने के लिए अमरूद की 4-5 नई कोमल पत्तियों को पीसकर उसमें थोड़ा सा काला नमक मिलाकर रोजाना खाने से से जोड़ो के दर्द में काफी राहत मिलती है।

डायबिटीज के रोगी के लिए एक पके हुये अमरूद को आग में डालकर उसे भूनकर निकाल लें और भुने हुई अमरुद को छीलकर साफ़ करके उसे अच्छे से मैश करके उसका भरता बना लें, उसमें स्वादानुसार नमक, कालीमिर्च, जीरा मिलाकर खाएं, इससे डायबिटीज में काफी लाभ होता है। ताजे अमरूद के 100 ग्राम बीजरहित टुकड़े लेकर उसे ठंडे पानी में 4 घंटे भीगने दीजिए। इसके बाद अमरूद के टुकड़े निकालकर फेंक दें। इस पानी को मधुमेह के रोगी को पिलाने से लाभ होता है।

जब भी आप फोड़े और फुंसियों से परेशान हो तो अमरूद की 7-8 पत्तियों को लेकर थोड़े से पानी में उबालकर पीसकर पेस्ट बना लें और इस पेस्ट को फोड़े-फुंसियों पर लगाने से आराम मिल जाएगा। चार हफ्तों तक नियमित रूप से अमरूद खाने से भी पेट साफ रहता है व फुंसियों की समस्या से राहत मिलती है।

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