Thursday, 3 April 2014

पश्चिमोत्तानासन

पश्चिम अर्थात पीछे का भाग- पीठ। पीठ में खिंचाव उत्पन्न होता है, इसीलिए इसे पश्चिमोत्तनासन कहते हैं। इस आसन से शरीर की सभी माँसपेशियों पर खिंचाव पड़ता है। पशिच्मोत्तासन आसन को आवश्यक आसनों में से एक माना गया है। शीर्षासन के बाद इसी आसन का महत्वपूर्ण स्थान है। इस आसन से मेरूदंड लचीला बनता है, जिससे कुण्डलिनी जागरण में लाभ होता है। यह आसन आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है। पशिच्मोत्तासन के द्वारा मेरूदंड लचीला व मजबूत बनता है जिससे बुढ़ापे में भी व्यक्ति तनकर चलता है और उसकी रीढ़ की हड्डी झुकती नहीं है। यह मेरूदंड के सभी विकार जैसे- पीठदर्द, पेट के रोग, यकृत रोग, तिल्ली, आंतों के रोग तथा गुर्दे के रोगों को दूर करता है। इसके अभ्यास से शरीर की चर्बी कम होकर मोटापा दूर होता है तथा मधुमेह का रोग भी ठीक होता है। यह आसन स्त्रियों के लिए भी लाभकारी है। इस योगासन से स्त्रियों के योनिदोश, मासिक धर्म सम्बन्धी विकार तथा प्रदर आदि रोग दूर होते हैं। यह आसन गर्भाशय से सम्बन्धी शरीर के स्नायुजाल को ठीक करता है।
विधि ----
1. जमीन पर चटाई या दरी बिछाकर इस आसन का अभ्यास करें। चटाई पर पीठ के बल लेट जाएं और अपने दोनों पैर को फैलाकर रखें। दोनों पैरों को आपस में परस्पर मिलाकर रखें तथा अपने पूरे शरीर को बिल्कुल सीधा तान कर रखें।
2. दोनों हाथों को सिर की ओर ऊपर जमीन पर टिकाएं। अपने दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाते हुए एक झटके के साथ कमर के ऊपर के भाग को उठा लें। इसके बाद धीरे-धीरे अपने दोनों हाथों से पैरों के अंगूठों को पकड़ने की कोशिश करें। ऐसा करते समय पैरों तथा हाथों को बिल्कुल सीधा रखें।
3. अगर आपको लेट कर यह आसन करने में परेशानी हो तो, इस आसान को बैठे बैठे भी किया जा सकता है। यह करते समय अपनी नाक को छूने की कोशिश करें। इस प्रकार यह क्रिया 1 बार पूरी होने के बाद 10 सैकेंड तक आराम करें और पुन: इस क्रिया को दोहराएं इस तरह यह आसन 3 बार ही करें। इस आसन को करते समय सांस सामान्य रूप से ले और छोड़ें।
लाभ-----
- इस आसन से शरीर की वायु ठीक रूप से काम करती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
- जिस व्यक्ति को क्रोध अधिक आता हो उसे यह आसन करना चाहिए।
- इस से पूरे शरीर में खून का बहाव सही रूप से होता है। जिससे शरीर की कमजोरी दूर होकर शरीर सुदृढ़, स्फूर्तिदायक और हमेशा स्वस्थ रहता है।
- इस आसन को करने से बौनापन दूर होता है।
- पेट की चर्बी को कम करता है तथा नितम्बों का मोटापा दूर कर सुडौल बनाता है।
- यह आसन सफेद बालों को कम करके उन्हे काले व घने बनाता है।
- इसके अभ्यास से गुर्दे की पथरी, बहुमूत्र (जो मुख्य रूप से पैन्क्रियाज के कारण होता है) दूर होता है तथा यह बवासीर आदि रोगों में भी लाभकारी है।
- यह आसन वीर्य दोष को दूर करता है तथा कब्ज को दूर कर मल को साफ करता है।
- यह आसन साइनस के साथ-साथ अनिद्रा के उपचार में भी फायदेमंद है। साइनसाइटिस के दौरान सिरदर्द से आराम के लिए भी इसका काफी महत्व है।

Tuesday, 1 April 2014

tips to choose a sweet and juicy watermelon


अनानास (Pineapple)

इन सब लाभों के लिए अनानास ताजा होना आवश्यक है। टीन के डिब्बों में मिलने वाला अनानास का रस स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
अनानास के गूदे की अपेक्षा रस ज्यादा लाभदायी होता है और इसके छोटे-छोटे टुकड़े करके कपड़े से निकाले गये रस में पौष्टिक तत्त्व विशेष पाये जाते हैं। जूसर द्वारा निकाले गये रस में इन तत्त्वों की कमी पायी जाती है, साथ ही यह पचने में भारी हो जाता है। फल काटने के बाद या इसका रस निकाल के तुरंत उपयोग कर लेना चाहिए। इसमें पेप्सिन के सदृश एक ब्रोमेलिन नामक तत्त्व पाया जाता है जो औषधीय गुणों से सम्पन्न है।
सभी प्रयोगों में अनानास के रस की मात्रा 100 से 150 मि.ली.। उम्र-अनुसार रस की मात्रा कम ज्यादा करें।
- अनानास पाचक तत्त्वों से भरपूर, शरीर को शीघ्र ही ताजगी देने वाला, हृदय व मस्तिष्क को शक्ति देने वाला, कृमिनाशक, स्फूर्तिदायी फल है।
- यह वर्ण में निखार लाता है।
- गर्मी में इसके उपयोग से ताजगी व ठंडक मिलती है।
- अनानास के रस में प्रोटीनयुक्त पदार्थों को पचाने की क्षमता है। - यह आँतों को सशक्त बनाता है।
- अनानास शरीर में बनने वाले अनावश्यक तथा विषैले पदार्थों को बाहर निकालकर शारीरिक शक्ति में वृद्धि करता है।
- हृदय शक्ति बढ़ाने के लिएः अनानास का रस पीना लाभदायक है। यह हृदय और जिगर (लीवर) की गर्मी को दूर करने उन्हें शक्ति व ठंडक देता है।
- छाती में दर्द, भोजन के बाद पेटदर्द होता हो तो भोजन के पहले अनानास के 25-50 मि.ली. रस में अदरक का रस एक चौथाई चम्मच तथा एक चुटकी पिसा हुआ अजवायन डालकर पीने से 7 दिनों में लाभ होता है।
- अजीर्णः अनानास की फाँक में काला नमक व काली मिर्च डालकर खाने से अजीर्ण दूर होता है।
- पाचन में वृद्धिः भोजन से पूर्व या भोजन के साथ अनानास के पके हुए फल पर काला नमक, पिसा जीरा और काली मिर्च लगाकर सेवन करने अथवा एक गिलास ताजे रस में एक-एक चुटकी इन चूर्णों को डालकर चुसकी लेकर पीने से उदर-रोग, वायु विकार, अजीर्ण, पेटदर्द आदि तकलीफों में लाभ होता है। इससे गरिष्ठ पदार्थों का पाचन आसानी से हो जाता है।
- अनानास व सेवफल के 50-50 मि.ली. रस में एक चम्मच शहद व चौथाई चम्मच अदरक का रस मिलाकर पीने से आँतों से पाचक रस स्रावित होने लगता है। उच्च रक्तचाप, अजीर्ण व मासिक धर्म की अनियमितता दूर होती है।
- मलावरोधः पेट साफ न होना, पेट में वायु होना, भूख कम लगना इन समस्याओं में रोज भोजन के साथ काला नमक मिलाकर अनानास खाने से लाभ होता है।
- बवासीरः मस्सों पर अनानास पीसकर लगाने से लाभ होता है।
- फुंसियाँ- अनानास का गूदा फुंसियों पर लगाने से तथा इसका रस पीने से लाभ होता है।
- पथरीः अनानास का रस 15-20 दिन पीना पथरी में लाभदायी होता है, इससे पेशाब भी खुलकर आता है।
- नेत्ररोग में- अनानास के टुकड़े काटकर दो-तीन दिन शहद में रखकर कुछ दिनों तक थोड़ा-थोड़ा खाने से नेत्ररोगों में लाभ होता है। यह प्रयोग जठराग्नि को प्रदीप्त कर भूख को बढ़ाता है तथा अरूचि को भी दूर करता है।
- पेशाब में जलन होना, पेशाब कम होना, दुर्गन्ध आना, पेशाब में दर्द तथा मूत्रकृच्छ (रूक-रूककर पेशाब आना) में 1 गिलास अनानास का रस, एक चम्मच मिश्री डालकर भोजन से पूर्व लेने से पेशाब खुलकर आता है और पेशाब संबंधी अन्य समस्याएँ दूर होती हैं।
- पेशाब अधिक आता हो तो अनानास के रस में जीरा, जायफल, पीपल इनका चूर्ण बनाकर सभी एक-एक चुटकी और थोड़ा काला नमक डालकर पीने से पेशाब ठीक होता है।
- धूम्रपान के नुकसान में- धूम्रपान के अत्यधिक सेवन से हुए दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए धूम्रपान छोड़कर अनानास के टुकड़े शहद के साथ खाने से लाभ होता है।
- अनानास में प्रचुर मात्रा में मैग्नीशियम पाया जाता है। यह शरीर की हड्डियों को मजबूत बनाने और शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का काम करता है। एक कप अनानास का जूस पीने से दिनभर के लिए जरूरी मैग्नीशियम के 73 प्रतिशत की पूर्ति होती है।
- अनानास में पाया जाने वाला ब्रोमिलेन सर्दी और खांसी, सूजन, गले में खराश और गठिया में फायदेमंद होता है।
- अनानास में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और साधारण ठंड से भी सुरक्षा मिलती है। इससे सर्दी समेत कई अन्य संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।
सावधानियाँ- अनानास कफ को बढ़ाता है। अतः पुराना जुकाम, सर्दी, खाँसी, दमा, बुखार, जोड़ों का दर्द आदि कफजन्य विकारों से पीड़ित व्यक्ति व गर्भवती महिलाएँ इसका सेवन न करें।
अनानास के ताजे, पके और मीठे फल के रस का ही सेवन करना चाहिए। कच्चे या अति पके व खट्टे अनानास का उपयोग नहीं करना चाहिए।
अम्लपित्त या सतत सर्दी रहने वालों को अनानास नहीं खाना चाहिए।
अनानास के स्वादवाले आइस्क्रीम और मिल्कशेक ये दूध में बनाये पदार्थ कभी नहीं खाने चाहिए। क्योंकि ये विरुद्ध आहार है और ये स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक है।
भोजन के बीच में तथा भोजन के कम से कम आधे घंटे बाद रस का उपयोग करना चाहिए।
भूख और पित्त प्रकृति में अनानास खाना हितकर नहीं है। इससे पेटदर्द होता है।
छोटे बच्चों को अनानास नहीं देना चाहिए। इससे आमाशय और आँतों का क्षोभ होता है।
सूर्यास्त के बाद फल एवं फलों के रस का सेवन नहीं करना चाहिए।

mast kalander chuu le